शुक्रवार, 18 जून 2010

न तिम्रो आँशु पुच्नसके

न तिम्रो आँशु पुच्नसके
न बैसभारी मायाँ दिन सके
अभागी यो चोला बोकी
सम्जेर मत्र बाच्न सके
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के गर्नु त दुखीया को जिन्दगी नै यस्तै ह्रैछ
न त तिमीलाई अपनाउुन सके
नत भुल्नै सके
न।।।।।,,
माया त अजम्बरी गाठो ह्रैछ
जती फुकायो कसिदै जने
नत बाग को फुल टिप्नसके
न त मन्दीर मा लगी चडाउन्सके
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न त भुलेरै मैले शन्ति पाउछु
न त सम्जेरै चोला फेर्न सके
जिन्दगी यो यसै उसै खाली खाली बिताईसके
अशोक खलान को मन्छे

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