गुरुवार, 17 जून 2010

पिउदैनपिउदा

पिउदैनपिउदा पनी मात च् डेछ आज मलाई
नशालु नजर जुदी लट्ठ बनायो मलाई
पीउदै।।।।।।।।।।।।।।
अब के उपमा दिउ उनको शुनहरी केशलाई
बादलको घुम्टो भनु कि उन्को लामोकेशलाई
पीउदै।।।।।।।।।।।।
मोहिनी मिठो बोली मुस्कान छ त्यस्तै ,,
ठुला तिदुई आँखा भित्र लुक्छ जगत पुरै
पीउदै ।।
ल लाटको टिका शोर्ह सिंगार तेस्तै

अनार दना पौती झल्कन्नछ मोती जस्तै
अशोक खलान को मान्छे

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